About
Shree Digamber Jain Mahasamiti
श्री दिगंबर जैन महासमिति की स्थापना वर्ष 2016 में डॉ. मणीन्द्र जैन संस्थापक अध्यक्ष की पहल पर देश भर से आये प्रबुद्ध भाई बहिनों ने दिल्ली में संपन्न हुई मीटिंग में गहन आत्म चिंतन के पश्चात समाज उत्थान के लिए सर्वसम्मति से किया था।3 साल में महासमिति देश के 14 राज्यों में स्थापित होकर समाज सेवा , महिला उत्थान , छात्रों के लिये योजना ,तीर्थो की स्वच्छता व रक्षा तथा देश के प्रति अपने कर्त्तव्य का भली भांति निर्वहन कर रही हैI महासमिति की पत्रिका “श्री दिगम्बर जैन महासमिति” के नाम से दिल्ली से प्रकाशित होती है I महासमिति का लक्ष्य इसके लोगो (logo) से स्वयं प्रगट होता है। अर्थात् *समग्र विकास, समृद्ध समाज महासमिति का मूल मन्त्र है* I राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हर तीन साल में होता है I वर्तमान में जनवरी 2020 में हुए चुनाव में संस्थापक अध्यक्ष डा. मणीन्द्र जैन पुनः सर्व सम्मतिसे निर्विरोध अगले 3 वर्ष के लिए अध्यक्ष चुने गए है। राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.मणीन्द्र जैन की अनुशंसा पर श्री प्रवीन जैन महामंत्री, श्री धर्णेन्द जैन कोषाध्यक्ष एवं श्रीमती शीला डोडिया जैन श्री दिगम्बर जैन महासमिति के अन्तर्गत महिला महासमिति की राष्ट्रीय अध्यक्षा मनोनीत की गई हैI संस्था का मुख्य कार्यालय दिल्ली में हैI संस्था सोसाइटी पंजीकृत एक्ट XXI of 1860 के अन्तर्गत पंजीकृत है । इसका कार्य क्षेत्र सम्पूर्ण भारत वर्ष है /
Shree Digamber Jain Mahasamiti संस्था के उद्देश्य व लक्ष्य
वीतराग देव – शास्त्र में पूर्ण आस्था तथा अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, संयम, समता और अनेकान्त के सिद्धान्तों का प्रचार – प्रसार |
नये - नये पंथो को जन्म देने वाली प्रवृतियों को रो/रद्द करना |.
जनसाधारण के बीच सदाचरण एवं आत्मोत्थान के समुचित विकास के लिए सतत क्रियाशील रहना |
स्कूल, कॉलेज, विश्वविघालय की स्थापना करना व सहयोग देना |
जैन धर्म, दर्शन, शास्त्रों में वर्णित ज्ञानोपयोगी कथाओं, आदि का विभिन्न माध्यमों के द्वारा विश्व में प्रचार प्रसार करना या सहयोग करना |
देश में स्थित जैन मंदिरों, जैन तीर्थस्थानों, जैन धर्मशालाओ, जैन स्कूल, कॉलेज, विश्वविध्यालयों आदि को समाज हित में पिरोना तथा हर संभव सहयोग देना |
जैन धर्म के मूल सिद्धांतों का प्रचार – प्रसार |
शाकाहार का व्यापक प्रचार – प्रसार तथा मघ, मास, मधु एवं अंडों (जैन समाज के नियमों के अनुसार) के सेवन से जैन समाज को बचाना |
सामाजिक रूढ़ियों, कुरीतियों और बुराइयों को दूर करने में समाज का मार्गदर्शन करना
व्यवहार और आचरण द्वारा समाज की विभिन्न उपजातियों और उनके संगठनो के बीच भेद भाव और परस्पर अलगाव की दीवारों को तोड़कर उन्हे संगठन – सूत्र में पिरोना |
भारतीय संस्कृति की अपूर्व धरोहर प्राचीन जैन मूर्तियों, स्तंभो, शिलालेखों, कीर्ति – स्तंभो, स्मारकों, संग्रहालयों, स्थापत्य की कलाकृर्तियों और पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, खोज, सरंक्षण, प्रकाशन आदि करना और कराना तथा इन कार्यो से जुड़ी संस्थाओं और व्यक्तियों को हर प्रकार से सहयोग प्रदान करना |
जैन संस्कृति, कला, विज्ञान, इतिहास और पुरातत्व से संबन्धित दुर्लभ साहित्य के सरंक्षण को मूरत रूप देना और दिलाना |
देश के विश्वविघालयों में भारतीय भाषाओं के साहित्य और दर्शन के पाठ्यक्रमों में जैन साहित्य और जैन दर्शन का समावेश कराना |
प्राचीन एवं अर्वाचिन शिक्षा पद्धति के समन्वय पर आधारित पाठशालाओं, विघयालयों, महाविघालयों, गुरुकुलों जैसी शिक्षण संस्थाओं के निर्माण और विकास में सहयोग देना तथा विश्वविघालयों में अहिंसा, सत्य अपरिग्रह, संयम, समता और अनेकान्त पर शोध एवं शिक्षण के लिए पीठों की स्थापना करना / कराना |
जैन साहित्य, दर्शन, संस्कृति, इतिहास और पुरातत्व पर शोध करने वाले छात्र – छात्राओं को छात्रवृत्ति आदि की व्यवस्था करना – कराना |
विदेशों में स्थापित प्राच्य- विधा संस्थाओं में संपर्क स्थापित कर उन्हें जैन साहित्य, संस्कृति, दर्शन,इतिहास और पुरातत्व से संबन्धित उच्च कोटी का साहित्य सुलभ कराना और वहाँ अध्ययन – अध्यापन एवं शोध कार्य के साधन जुटाना तथा विद्धानों के पारस्परिक आदान – प्रदान की व्यवस्था करना |
असहाय, असमर्थ, निराश्रित, अपाहिज, वृद्ध, अपंग और गरीब व्यक्तियों एवं विधवाओं को जीविकोपार्जन के लिए आर्थिक सहायता जुटाना |
जनकल्याण की दृष्टि से ओषधालयों, चिकित्सालयों, प्रसूतिग्रहों, पाठशालाओं, पुस्तकालयों, वाचनालयों, स्वाध्याय – मंडलों, छात्रावासों आदि की स्थापना, विस्तार और विकास करना तथा अन्य संस्था के प्रयत्नो में पूर्ण सहयोग प्रदान करना |
वे सभी कार्य करना जो संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सहायक हों, जिसमे सम्मिलित है- भूमि, भवन, चल, एवं अचल संपति का क्रय तथा विक्रय, आयकर अधिनियम के अंतर्गत संभव प्रतिभूतियों, ब्रांड (Bond) आदि में निवेश, ऋण लेना, देना इत्यादि |
जैन धर्म, समाज या सामाजिक व्यक्ति पर विपती के समय एक जुट हों कर रक्षा हेतु हर संभव प्रयास/कानूनी सहायता आदि की व्यवस्था करना तथा संस्थाओं को सहयोग प्रदान करना तथा सहयोग लेना |
जैन समाज को सरकार से मिलने वाले लाभों तथा अन्य सरकारी विभिन्न योजनाओं के द्वारा समाज का उत्थान करना | धर्म प्रसार के लिए धार्मिक यात्रा का आयोजन करना |